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अयोध्या में महाकुंभ जैसा दृश्य,गली गली दीवाली जैसी तैयारी

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में छह दिन शेष हैं। सरयू के तटों पर मकर संक्रांति की रौनक ने जैसे प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का मंगलाचरण कर दिया है। यहां दो किलोमीटर लंबे घाटों पर श्रीराम की स्तुतियां, भजन और मंदिर निर्माण के लिए हुए अथक संघर्ष के विजय गीत गूंज रहे हैं।

जैसे दिवाली के ठीक पहले रंगते-पुतते घरों की साज-सज्जा समेटी जाती है, अयोध्या के लिए भी समय कम और काम बहुत अधिक है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में छह दिन शेष हैं। सरयू के तटों पर मकर संक्रांति की रौनक ने जैसे प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव का मंगलाचरण कर दिया है। यहां दो किलोमीटर लंबे घाटों पर श्रीराम की स्तुतियां, भजन और मंदिर निर्माण के लिए हुए अथक संघर्ष के विजय गीत गूंज रहे हैं। नदी के लंबे रेतीले मैदान पर लक्षचंडी महायज्ञ की तैयारियों में हरिद्वार के लोग जुटे हैं। जनकपुर और सीतामढ़ी से श्रद्धा का सैलाब उमड़ा है। अयोध्या सीता की ससुराल है और पीहर के लोग विशेष उपहार लिए शोभायात्राओं में आ रहे हैं। दंडकारण्य श्रीराम का ननिहाल है, जहां से आकर्षक आभूषण लाए गए हैं। पांच सौ साल बाद प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा राष्ट्रीय पर्व का रूप ले रही है। हर प्रदेश से रामभक्तों की टोलियां टोलियां अमूल्य आभूषण, सुगंधित द्रव्य, वस्त्र, वाद्य और न जाने क्या-क्या ला हैं। रामघाट से होकर जब आप अयोध्या में प्रवेश करेंगे तो मकर संक्रांति की रौनक अचानक दिवाली की अनुभूति में ले आएगी। अवध विश्वविद्यालय की छात्राओं को ही लीजिए। नई नवेली अयोध्या में फोरलेन के हो चुके रामपथ के प्रवेश बिंदु पर दो सौ छात्राएं आठ किलोमीटर लंबी रंगोली बनाने में जुटी हैं। विश्वविद्यालय के सभी 42 विभागों ने यह निर्णय लिया कि रामलला के निमित्त मार्गों को सजाने का काम वे करेंगे। ये छात्राएं फाइन आर्ट्स और फैशन डिजाइनिंग की हैं। कार्य का शुभारंभ करने के पहले सबके माथे पर वैष्णवी तिलक की छाप लगी है। उनके लिए यह अयोध्या में संक्रांति के समय दिवाली के आगमन का प्रथम अनुभव है। चलते ट्रैफिक में उन्हें तीन दिनों में तेजी से काम करना है। प्राण प्रतिष्ठा के निमित्त प्रभु श्रीराम के लिए यह उनकी सेवा है।वहीं, स्वामी रामभद्राचार्य के अमृत महोत्सव की छटा लुभावनी रंगीन लेजर लाइटों से लैस है। गोस्वामी तुलसीदास का वह तुलसी चौरा यहीं है, जहां रामचरितमानस की रचना हुई।

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