दुनिया में जितने देश हैं, उतनी ही मान्यताएं लोग मानते आ रहे हैं। शहरीकरण और विकास के बाद बहुत से लोग अपने कई पुराने रिवाजों को भूल गए, लेकिन कभी-कभी उन्हें पूरे जोर-शोर से मनाया जाता था। जापान में भी लोग अपने दांतों को काला करने का रिवाज था। हालाँकि अब इसका पालन नहीं होता, लोग इसे मानते थे।
जैसा कि हिस्ट्री ऑफ येस्टर्डे (History of Yesterday) वेबसाइट ने बताया, जापान सहित आसपास के कई एशियाई देशों में ये मान्यता प्रचलित थी। इन देशों में जापान, चीन, थाईलैंड, फिलिपीन्स और वियतनाम शामिल थे, लेकिन सबसे पहले जापान माना जाता है। ये रिवाज 794 से 1185 तक हियान पीरियड (Heian Period) में हुई। मान्यता को ओहागूरो (Ohaguro) नाम दिया गया।
दांत काले करने की प्रथा
यौवनावस्था की दहलीज पर खड़े युवक और युवतियां पहले दांतों को काला करने की प्रथा मनाते थे। दांतों को काला करने से पता चलता था कि उन्हें जवान होना चाहिए। कारणों से लोगों ने अपने दांतों को काला करना भी मानते थे, क्योंकि इससे मसूड़े खराब नहीं होते थे और दांतों पर कीड़े नहीं लगते थे।
मुंह को इससे कोई नुकसान नहीं हुआ। उस समय काले दांत रखना शानदार था। इस प्रथा का पालन शादी की उम्र तक पहुंच चुकी युवतियां और नवविवाहित औरतें भी करती थीं। उसने अपने चेहरों को अधिक सफेद कर लिया, जिससे उनके काले दांत दूर से दिखाई देते थे।
दांतों को काला करने का क्या कारण था?
पुराने जापान में दांतों को काला करना समझदारी और खूबसूरती का संकेत था। इसलिए शाही परिवारों और समुराय हमेशा अपने दांतों को काला करते थे। इसके अलावा, शादी या अंतिम संस्कार के दौरान लोग अपने दांतों को काला करते थे।
मिलिट्री जवान अक्सर अपने मुंह की कोई चोट या खराबी को छुपाने के लिए अपने दांतों को काला करते थे। आज ये मान्यताएं ना के बराबर मानती हैं। अब जापान के गीशा जिले में महिलाएं कभी-कभी अपने दांतों को काला करती हैं।
दांतों को काला करने वाली सामग्री क्या थी?
दांतों को काला करने के लिए एक पदार्थ कानेमीजू (Kanemizu) बनाया जाता था। इसे बनाने के लिए सिरका, चाय, और चावल का वाइन मिलाया जाता है। लोहे के फिलिंग को सिरका या चाय में मिलाया जाता है। ऑक्सीकरण होने पर लिक्विड स्वयं काला हो जाता है. दांतों पर इसे लगाने से दांतों का पूरा रंग काला हो जाता है।